डायरी का एक पन्ना

1)
मेरा नाम अहमद है | मैं आज 10 साल का हो गया हूँ | ये डायरी मुझे अब्बू ने तोहफ़े में दी है | आज अब्बू ने मेरे सारे दोस्तों को हमारे घर पे बुलाया था | मेरे सारे दोस्त आये थे, हम सब जी भर के खेले | लेकिन मेरा सबसे अच्छा दोस्त श्रेय नहीं आया | मेरे अब्बू ने बताया की उन लोगों के अल्लाह अलग हैं इसीलिए उसके पापा ने उसे हमारे यहाँ नहीं आने दिया | लेकिन ये कोई वजह थोड़े न हुई न आने की, मैं नहीं मानता | वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है, हम स्कूल भी साथ-साथ जाते हैं | उनका अल्लाह अलग है तो इसमें मेरी क्या गलती ? इसकी वजह से मेरे जन्मदिन पे न आने का कोई कारण नहीं होता | कल मैं उससे जरुर कट्टी कर लूँगा |

2)
"चार साल की बच्ची का शिक्षक ने किया रेप !" आज के अख़बार के मुख्य प्रष्ठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था | पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए |
मैं भारत में ही रहता हूँ ना ? द्रोणाचार्य, राम, विवेकानंद जैसे महापुरुष यहाँ ही हुए हैं ना ? क्या इस देश के लोगों में अब बिलकुल भी इंसानियत नहीं रही ? क्या इतने क्रूर हो गए लोग ? शायद मुझे इसलिए भी ज्यादा बुरा लग रहा है क्यूँकि मैं ख़ुद भी एक शिक्षक हूँ | इस खबर की वजह से मैं आज दिन भर काम में ध्यान नहीं लगा सका | इसीलिए, मैंने सोचा की मैं भी वही करूँगा जो देश के बाकि सरे लोग करते है, मैं भूल जाऊंगा की ऐसा कुछ हुआ भी था, कोई इस बारे में बात करेगा भी तो एक कान से सुनकर दूसरे से निकल दूंगा | क्यूँकि एक अकेला व्यक्ति आख़िर कर ही क्या सकता है ?

3)
फिर से आज उसने मुझ पर हाथ उठाया | आज तो आशु ने भी हमें देख लिया | वो डर-सहम कर अपने कमरे में जाकर छुप गया | मैं जब उसे खाना खिलाने गयी तो खाना भी नहीं खाया | "मम्मी! पापा ने आपको क्यों डांटा ? आप ने क्या गलती की थी ?" "बेटा, ये बड़ो की बातें हैं, इन पर ध्यान नहीं देते |" "लेकिन मैं इतनी गलती  करता हूँ फिर भी पापा मुझे नहीं मारते, आप को क्यों मारा ?" "बेटा, मम्मी ने एक बड़ी गलती कर दी थी ना, इसलिए |"
क्या जवाब दूँ मैं उस छोटी-सी ज़ान को अब ? मैं अकेली आखिर कर भी क्या सकती हूँ |

4)
आज फिर से मैंने पूरा दिन उन्हीं ऑफिसों के चक्कर काटते-काटते बिता दिया | पता नहीं मुझे मेरी पेंशन कब मिलेगी ? मेरे इतने से काम के लिए पता नहीं मुझे और कितना परेशान होना पड़ेगा ? थक गया हूँ मैं अब | पता नहीं यहाँ पर लोग अपना काम क्यों नहीं करना चाहते ? हम भी तो बॉर्डर पे अपना काम पूरी निष्ठा और लगन के साथ करते थे | वो भी क्या दिन थे, मैं शायद ही कभी उस जिंदगी से बाहर आ पाउँगा | यहाँ पर हर छोटे-से-छोटा काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है | ये लोग सरकार से भी पैसा लेते है, हम से भी पैसा लेते है, और काम भी नहीं करते | अगर सब लोग अपना-अपना काम ठीक तरह से करे तो भ्रष्टाचार बचे ही ना | लेकिन मैं अकेला क्या कर सकता हूँ ? अब मैं बूढ़ा हो चूका हूँ, अब मुझमे लड़ने की शक्ति नहीं बची | थक गया हूँ मैं अब |

5)
पता नहीं क्यों सारे घर वाले मेरी शादी कराने पे उतारू हैं | मैं भी पढ़ना चाहती हूँ, मुझे भी ज़ॅाब करना है, मैं भी कमाना चाहती हूँ | पता नहीं इन बड़े लोगों को क्यों समझ नहीं आता की एक बेटी भी कमा सकती है | पता नहीं ये लोग लड़कियों को क्या समझते है | अब तो पापा भी इनका पक्ष लेने लगे है | मैं दिन-ब-दिन अकेली होती जा रही हूँ, पता नहीं मैं अब क्या करूंगी ? सुजाता आज कह रही थी की मुझे घर छोड़ के भाग जाना चाहिए, लेकिन ये ठीक नहीं होगा ना ! मुझे पता है मैं कैसे-न-कैसे करके पापा को मना ही लूंगी | मुझे पता है की वो ये सब दादाजी और बाकी घर के बड़ों की वजह से कर रहे है | काश! पापा एक बार उनकी छोड़ के मेरी भी सुन लें, काश! पापा एक बार मेरी बात मान लें |

6)
उनके पास हमारे से ज्यादा पैसा, इज्ज़त, एैशो-आराम थे | शायद इसीलिए उसने पढ़ाई पर कभी ध्यान नहीं दिया | लेकिन ये बातें परीक्षा लेने वालों को कहाँ मालूम थी | और शायद इसीलिए उसने मुझसे आधे नंबर प्राप्त कर के भी परीक्षा पास कर ली | शायद इसी को किस्मत कहते है | हाँ, मुझे मालूम है की हमारी शिक्षा प्रणाली में कई खामियां हैं, जिनकी वजह से न जाने कितने ही होनहार बच्चे आये दिन आत्महत्या कर बैठते हैं | शायद थक जाते होंगे वो, समाज की, माता-पिता की आशाओं का बोझ उठाते-उठाते | लेकिन ये बातें कौन सुनता है, किसी को भी इससे क्या फर्क पड़ता है | जब तक खुद के किसी करीबी के साथ ऐसा कुछ न हो, किसे फर्क पड़ता है |

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